बैंक में बढ़ते एनपीए और बकाये की वसूली की धीमी प्रक्रिया बैंकों के लिए महत्वपूर्ण चिंता का विषय है। लोक अदालत एक ऐसा मंच है जो विवादों के निपटारे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। लोक अदालत बिना अदालतों का सहारा लिए न्याय दिलाने की एक प्रक्रिया है। इसकी प्रक्रिया स्वैच्छिक है और इस सिद्धांत पर काम करती है कि विवाद के दोनों पक्ष अपने विवादों को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने के लिए तैयार हैं। इस तंत्र के माध्यम से, विवादों को सरल, तेज और लागत प्रभावी तरीके से सुलझाया जा सकता है। यह बैंकों का काम है कि वे इस मंच का उपयोग करें और एनपीए की वसूली में तेजी लाएं।
लोक अदालत वैकल्पिक विवाद निवारण तंत्रों में से एक है, यह एक ऐसा मंच है जहां कानून की अदालत में या पूर्व मुकदमेबाजी के स्तर पर लंबित विवादों/मामलों को सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटाया/समझौता किया जाता है। लोक अदालत को कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत वैधानिक दर्जा दिया गया है। उक्त अधिनियम के तहत, लोक अदालत द्वारा किए गए फैसला (निर्णय) को एक दीवानी अदालत का आदेश माना जाता है और सभी पक्षों पर अंतिम रूप से बाध्यकारी होता है। लोक अदालत में फैसला दोनों पक्षों के सहमती के उपरांत ही लिया जाता है अतः इस फैसला के खिलाफ कोई अपील कानून की किसी भी अदालत के समक्ष नहीं किया जा सकता है।
लोक अदालत की विशेषता: लोक अदालत में कार्यवाही: की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं।
i) इस प्रक्रिया में कोई न्यायालय शुल्क शामिल नहीं है।
ii) 20 लाख रुपये तक की राशि से जुड़े बैंकिंग विवादों को निपटाने के लिए लोक अदालत सक्षम है।
iii) यह सिविल कोर्ट/डीआरटी कोर्ट में लंबित किसी भी मौजूदा मुकदमे का संज्ञान ले सकता है।
iv) यदि कोई समझौता नहीं होता है, तो पक्ष सिविल कोर्ट/डीआरटी में कार्यवाही जारी रख सकते हैं।
v) लोक अदालत के माध्यम से मामलों के निपटारे से न्यायालय/डीआरटी के समक्ष मामलों को आगे बढ़ाने में खर्च और समय में कमी आएगी जो कि एक समय लेने वाला मामला है।
vi) इसके द्वारा पारित फरमानों की कानूनी स्थिति है और विवाद के सभी पक्षों के लिए बाध्यकारी हैं और इस अदालती फैसला के खिलाफ किसी भी अदालत में कोई अपील नहीं होगी।
लोक अदालत का गठन: प्रत्येक राज्य प्राधिकरण या जिला प्राधिकरण या सर्वोच्च न्यायालय कानूनी सेवा समिति या प्रत्येक उच्च न्यायालय कानूनी सेवा समिति या तालुका कानूनी सेवा समिति लोक अदालत का गठन कर सकती है। उपरोक्त प्राधिकरण/न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र में और ऐसे क्षेत्रों के लिए जो वह ठीक समझे लोक अदालत का आयोजन कर सकती है।
लोक अदालत के सदस्य: किसी क्षेत्र के लिए आयोजित प्रत्येक लोक अदालत में निम्न पदाधिकारी शामिल होंगे।
i) सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी; तथा
ii) राज्य प्राधिकरण या जिला प्राधिकरण या सर्वोच्च न्यायालय कानूनी सेवा समिति या उच्च न्यायालय कानूनी सेवा समिति, या जैसा भी मामला हो, तालुका कानूनी सेवा समिति द्वारा निर्दिष्ट क्षेत्र के अन्य व्यक्ति लोक अदालत के सदस्य होते हैं।
स्थायी लोक अदालत की स्थापना: केंद्रीय प्राधिकरण, प्रत्येक राज्य प्राधिकरण, अधिसूचना द्वारा ऐसे स्थानों पर एक या अधिक सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं के लिए स्थायी लोक अदालत की स्थापना कर सकता है।
लोक अदालत द्वारा मामले का संज्ञान: लोक अदालत में निम्न प्रकार से अदालती विवाद का निपटारा हेतु आवेदन हो सकता है।
i) मुकदमे के दोनों पक्ष अपने विवाद को लोक-अदालत में भेजने के लिए सहमत हो सकते हैं, या
ii) वहां का कोई एक पक्ष मामले को निपटान के लिए लोक अदालत में भेजने के लिए न्यायालय/डीआरटी को आवेदन करता है, या
iii) अदालत संतुष्ट है कि मामला लोक अदालत द्वारा संज्ञान लेने के लिए उपयुक्त है, अदालत मामले को लोक अदालत को संदर्भित करेगी।
iv) जहां किसी मामले को लोक अदालत के पास भेजा जाता है, वह मामले को निपटाने के लिए लोक अदालत आगे बढ़ेगा और पक्षों के बीच समझौता करेगा।
लोक अदालत में मामले का निपटारा: किसी भी संदर्भ का निर्धारण करते समय प्रत्येक लोक अदालत न्याय, समानता, निष्पक्षता और अन्य कानूनी सिद्धांतों के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होगी। लोक अदालत में निर्णय दोनों पक्षों के सहमती के उपरांत ही लिया जाता है । जहां लोक अदालत द्वारा कोई फैसला नहीं दिया जाता है या समझौता नहीं हो सकता है वैसे मामले का रेकॉर्ड उसके द्वारा उस न्यायालय को लौटा दिया जाएगा जहां से संदर्भ प्राप्त हुआ है, और पक्षकारों को न्यायालय के आदेश मानने की सलाह दी जाएगी। जहां मामले का रिकॉर्ड वापस किया जाता है, वहां अदालत उस संदर्भ से आगे बढ़ेगी जहाँ से ऐसे मामले से निपटने के लिए पहले पहुंचा था।
लोक अदालत का फैसला: लोक अदालत का फैसला दोनों पक्षों के सहमती से ही पारित किया जाता है। लोक अदालत द्वारा दिए गए प्रत्येक निर्णय को सिविल कोर्ट जैसा आदेश माना जाता है। यहाँ का अदालती आदेश सभी पक्षों पर अंतिम और बाध्यकारी होता है जिस कारण इसके आदेश के खिलाफ किसी भी अदालत में कोई अपील स्वीकार नहीं होगी।
लोक अदालत की शक्तियाँ: न्यायिक विवाद के निपटाने के उद्देश्य से लोक अदालत के पास निम्नलिखित शक्तियाँ होंगी।
i) किसी भी गवाह को बुलाने और उसकी उपस्थिति को लागू करने और शपथ पर उसकी पूछताछ करने के लिए।
ii) दस्तावेजों की खोज और समीक्षा के लिए।
iii) हलफनामे पर साक्ष्य प्राप्त करने के लिए।
iv) सार्वजनिक रिकॉर्ड या रिकॉर्ड की प्रति की मांग के लिए।
लोक अदालत का आयोजन कैसे करें: लोक अदालत के आयोजन के लिए संबंधित बैंक जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण से संपर्क कर सकते हैं। प्राधिकरण विशेष रूप से किसी बैंकों के लिए या सभी बैंक के लिए भी लोक अदालत आयोजित करने के लिए सहमती दे सकता हैं। बैंक की शाखाओं के समूह को ध्यान में रखते हुए क्षेत्र की पहचान कर सकते हैं। लोक अदालत के आयोजन से अदालतों में या डीआरटी के समक्ष लंबित मामलों की संख्या को कम किया जा सकता है।
jitendra Pal Singh says
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Sumita Taterway says
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मनोहर यादव says
बहुत ही अच्छा लेख है। धन्यवाद गुरूजी।